शुक्रवार, २४ जानेवारी, २०२०

मेरी हिंदी गझले

तुममें है हिम्मत वो साथ करेगी क्यू डरते हो ?
साथी नहीं तो खुदके साथ क्यू न तूम चलते हो ?

इन गलियोमें आवारा कुत्ते घुमते रहते है ...
तूम सोचसमझकर मुरख , क्यू नादानी करते हो ?

उनके दिलका पैगाम सुनके भावूक बन जाओ
पत्थरदिलसा मूह लेकर अकेले क्यू फिरते हो ?

ढलता है तो ढलने दे सूरज , उसकी आदत है !
तूम अपने पावपर खडे , जमीपर क्यू ढलते हो ?

तुमसे बढकरभी कोई शायर हो , तो क्या हुआ ?
वो उसकी जगह और तूम अपनी जगह रहते हो !


.... देवीदास हरिश्चंद्र पाटील



तूही नहीं , तेरा हर बहाना याद हैं
हर बहाना , मुझको सच बताना याद हैं

तूम तो हसते रहे सारी जिंदगीभर
जिंदगीभर मुझको यू रूलाना याद हैं

तेरी हर बातका पता था मुझको मगर
तेरा हर बातको घुमाफिराना याद हैं

तेरी हर जडको मैं कबसे जानता हूँ
तूहीं नहीं तेरा सब घराना याद हैं

तूम खुदको मुझसे अकसर छुडाते रहें
और मुझको तो मरमिट जाना याद हैं


..... देवीदास हरिश्चंद्र पाटील .



वो भी क्या जमाना था
हर कोई सयाना था

ये जिंदगीभी क्या थी ?
अनजाना फसाना था

जाने दो उसे , वो तो
बेचारा , दिवाना था

खुदको गैरोंसे नहीं
अपनोंसे छुडाना था

वो क्या बात थी यारो
होठोंसे पिलाना था

.... देवीदास हरिश्चंद्र पाटील



बडे बेरहम हो , दूरसे बात करते हो !
साया कहते हो और यू दूर रहते हो  !

तुम्हारी बेशरमी हमको क्यू भा गयी ?
हमे देखकर और क्यू बेशरम बनते हो ?

शायद ये सवाल नहीं... कुछ औरही होगा !
कुछ दिलमें हैं ... और कुछ जुबापे रखते हो !

हम क्या करे ? हमें बुरी आदतसी पडी हैं !
हर वक्त तूम हमें जो सुधरने लगते हो !

ये खेल तुम्हाराही रचा हुआ हैं देखो !
इसे खुद बनाकर तूम खुदही बिखरते हो !


..... देवीदास हरिश्चंद्र पाटील


जमाना तुम्हारा तो मेरे कामका नहीं !
तेरा सिंधूरभी तो मेरे नामका नहीं ...!

जितना हो सके उतना तो दौडते रहना
यह मामलाभी कोई आरामका नही !

उनसेभी बेहतर कोई शक्ती है यहाँ .....
ये अजुबा तो देख , राम या श्यामका नहीं !

मै तो अपनी धूनमें झुमताही चला हू ....
जान लो तुम , ये असर , किसी जामका नहीं !

प्यार वो रोग है जो बढताही जाता है
उसपर ईलाज चलता झंडूबामका नहीं !

.... देवीदास हरिश्चंद्र पाटील .


आजभी हम तनहाही हैं
यू अकेले रहनाही हैं ...!


किसके साथ चले हम ?
खुदके बल चलनाही हैं !


कौनसा सूरज रोशनी देगा
कौनसा चाँद बननाही हैं ...


आँखमें सपने खूब लेकिन
इक ना सपना अपनाही हैं !


किसकिसको कहाँ ढुंढे ...?
किसके काबिल बननाही हैं ?



... देवीदास हरिश्चंद्र पाटील




शाम सबेरे दिलमें मेरे रामजी बोले जाये
सत्यवचन जो मैने दिया वो तो कौन निभाये ...

किसने मेरे हनुमानजीकी जात निकाली
किसके धर्म की हिम्मत हैं ये बात बताये

दिनदहाडे देखी सीता जलती रस्ते में ...
कोई नहीं हैं हिम्मतवाला जो उसे बचाये

देखी हमने हर दिलकी वो साफसफाई
देखा हमने हर कोई अपना शंख बजाये

आज तो सूग्रीव वाली भी इक हुये हैं ...
आज यहाँ कोई नहीं जो रामराज लाये


श्री . देवीदास हरिश्र्चंद्र पाटील



तूम जो मुझे देखते हो तो अच्छा लगता है
तूम जो मुझे चाहते हो तो अच्छा लगता है

मुझे मालूम नहीं के मैं तेरा कौन लगता हूँ
मुझे अपना मानते हो तो अच्छा लगता हैं

मुझे मालूम हैं के हम पास नहीं आ सकते
दूरसे तूम झाकते हो तो अच्छा लगता है

कोई बात नहीं हैं जब कोई बात नहीं हैं
खामोशीसे बोलते हो तो अच्छा लगता हैं

हाथमें तेरा हाथ नहीं तो कोई फर्क नहीं
नजरमें नजर डालते हो तो अच्छा लगता हैं


.... देवीदास हरिश्चंद्र पाटील



कुछ फर्क नहीं पडता , सिर्फ गरीब मरता हैं
नंगे पाँव घूमकर जो , आसूओंपे पलता हैं ...

अब तो यकीनसा हो गया हैं मुझको यारो ...
इन्सान जो करता हैं ,  वो खुदा क्या करता हैं ?

ये तेरी सोच हैं जो तुम्हेंही ठीक करनी होगी
देख, समय तो सिर्फ करवटे बदलता रहता हैं

तूम अपनी दिलमें अपने होशकी बात रखो ...
कहने दो उसको ,  वो तो अपनी बात कहता हैं

इक खयालसाही हैं , कोई जहर तो नहीं लाया
समझमें नहीं आता कोई इतना क्यू डरता हैं ...


.... देवीदास हरिश्चंद्र पाटील



लोग आते रहे 



लोग आते रहे , लोग जाते रहे
हम वही पे वही गम भुलाते रहे


प्यार उनका सही या न था भी सही
था निभाना हमें हम निभाते रहे


जख्म होते रहे , दर्द होता रहा
चंद आँसू बहे...हम छिपाते रहे


ये कहानी किसी और की थी मगर
रास आयी हमें , हम सुनाते रहे


रातभर सिलसिला ...खूब चलता रहा ...
आग लगती रही.... हम बुझाते रहें ...



... देवीदास हरिश्चंद्र पाटील



वो तो ...



वो तो कहा कहा पर हमें ढुंढते रहें
हम उन्हींकी आँखोंमें बसते रहें


वो मापने चले थे हमारी उचाईयाँ ...
हम उनके दिलमेंही डुबते रहें


आसमाँ छुनेकी चाहत थी उन्हे ...
हम जमीको आसमाँ समझते रहें !


हमने हर वक्त दिल बडाही किया
कहने दिया उनको जोभी कहते रहें


हमको निचा दिखाना चाहा मगर
खुदकी नजरोमें खुदही गिरते रहें




... देवीदास हरिश्चंद्र पाटील

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